H-1B वीज़ा: भारत में आक्रोश – क्या अंगूर सच में खट्टे हैं या सच्चाई कड़वी लगती है? क्यों आज भी प्रतिभाशाली युवा देश छोड़ते हैं..!

    By Hitesh Jagad, – Chief Editor Dhwani Community Newpaper

    जब अंगूर खट्टे लगते हैं या खाते समय कड़वाहट महसूस होती है, हमारी पहली प्रतिक्रिया अक्सर फलों की शिकायत करना होती है। लेकिन सच्चाई यह है कि कई बार समस्या अंगूर में नहीं, बल्कि हमारी बागवानी और सिंचाई के तरीके में होती है। ठीक इसी तरह, हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा H-1B वीज़ा कार्यक्रम में किए गए बड़े सुधारों ने भारत में हलचल मचा दी है। टीवी डिबेट, यूट्यूब न्यूज़ चैनल, अख़बार के कॉलम और व्हाट्सऐप फॉरवर्ड्स में, इन सुधारों पर प्रतिक्रिया बेहद तीव्र, भावनात्मक और अक्सर अतिशयोक्तिपूर्ण रही है।

    इन नए सुधारों में ऊँची वार्षिक फीस और विदेशी कामगारों को रोजगार देने वाली कंपनियों के लिए कड़े नियम शामिल हैं। इसे अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा और नागरिकों को प्राथमिकता देने का तरीका बताया जा रहा है। सामान्य दृष्टि से यह कदम कड़ा लग सकता है, खासकर भारत के लिए, जो H-1B वीज़ा धारकों में लगभग ८०% हिस्सेदारी रखता है। लेकिन यदि हम थोड़ी दूर से देखें और स्थिति का निष्पक्ष मूल्यांकन करें, तो तस्वीर और स्पष्ट हो जाएगी।

      भारत की तीव्र प्रतिक्रिया और कठोर सच्चाई

      भारत की सबसे बड़ी प्रतिक्रिया का कारण स्पष्ट है: भारतीय इस कार्यक्रम के सबसे बड़े उपयोगकर्ता हैं। H-1B वीज़ा कार्यक्रम पर भारतीयों का प्रभुत्व वैसा ही है जैसा कनाडा में छात्रों का प्रवास। और इस प्रभुत्व के साथ जुड़ा है एक कठोर तथ्य: भारतीयों ने इस प्रणाली का सबसे अधिक दुरुपयोग किया।

      सच स्वीकार करें: यू.एस. में गए हर भारतीय टेक वर्कर “विश्वस्तरीय प्रतिभा” का उदाहरण नहीं हैं। उनमें से कई कम वेतन वाले, बॉडी-शॉपिंग कंसल्टेंसी में फंसे या शोषणकारी अनुबंधों में फंसे हुए हैं। इस प्रणाली का खुलेआम दुरुपयोग हुआ। इसलिए, जब अमेरिकी सरकार ने इसे सुधारने का निर्णय लिया, तो भारत ने आश्चर्य, गुस्से और आक्रोश के साथ प्रतिक्रिया दी। भारतीय मीडिया ने इसे सिस्टम में सुधार की बजाय भारतीय कामगारों पर हमला बताया।

      लेकिन दूसरी ओर देखें: अगर भारत अमेरिका की जगह होता, क्या अलग व्यवहार करता? भारत अपने सीमाओं की सुरक्षा में कड़ा है। इसके वीज़ा नियम सख्त हैं। यह अवैध प्रवासियों पर नजर रखता है और विदेशियों द्वारा छात्र वीज़ा के दुरुपयोग को रोकने के लिए नियम बनाता है। यदि भारत अपने नागरिकों के हित की रक्षा के लिए ये कदम उठा सकता है, तो अमेरिका क्यों नहीं?

      हर देश की पहली जिम्मेदारी अपने लोगों के प्रति होती है। अमेरिका भी इससे अलग नहीं है। अगर अमेरिकियों को लगे कि विदेशी कामगार उनकी नौकरियों या वेतन पर असर डाल रहे हैं, तो सरकार का जवाब देना जरूरी है। भारतीयों का गुस्सा इसलिए समझ में नहीं आता कि ऐसा मानें जैसे सिर्फ उन्हें निशाना बनाया गया हो। नियम सभी राष्ट्रीयताओं पर लागू होते हैं, केवल भारतीयों पर नहीं।

        “प्रतिभा अब भारत में रहेगी” — क्या यह सच है?

        सोशल मीडिया पर वायरल एक कटाक्ष है: “धन्यवाद, मिस्टर ट्रंप, भारतीयों को फिर महान बनाने के लिए। अब भारतीय प्रतिभा भारत में रहेगी।”

        क्या यह वास्तव में सच है? या यह केवल हमारी असुरक्षा पर हँसने का तरीका है?

        सच्चाई यह है कि भारतीय प्रतिभा अमेरिका में इसलिए खिला क्योंकि वहां प्लेटफ़ॉर्म मिला जो भारत में नहीं था। आज Google, Microsoft, IBM, Adobe जैसी कंपनियों के CEO भारतीय जन्म के हैं। लेकिन सवाल है: क्या यदि वे भारत में रहते तो उन्हें अपनी प्रतिभा साबित करने और उसे मान्यता पाने का समान अवसर मिलता?

        अदानी, अंबानी, टाटा, महिंद्रा, इंफोसिस, विप्रो जैसी बड़ी भारतीय कंपनियाँ वैश्विक स्तर पर हैं। लेकिन क्या आप एक भी ऐसे भारतीय जन्मे व्यवसायिक का नाम बता सकते हैं — जो पारिवारिक वारिस न हो, बल्कि केवल क्षमता और मेरिट के आधार पर वैश्विक CEO बना हो? भारतीय कंपनियाँ अक्सर बाहरी प्रतिभा को प्रमोट नहीं करती; सगावाद और राजनेतिक खेल सर्वोपरि रहते हैं। अमेरिका में प्रतिभा को अवसर मिला; भारत में अक्सर वह दब गई।

        जब हम कहते हैं “यह सुधार भारतीय प्रतिभा को भारत में रखेगा,” तो वास्तविकता यह है कि भारत में रहना सफलता की गारंटी नहीं। हमारे सबसे प्रतिभाशाली लोगों को बाहर जाना पड़ा क्योंकि भारत ने उन्हें उच्चतम मंच नहीं दिया।

        सिस्टम का दुरुपयोग: नकारा नहीं जा सकता

        हकीकत यह है कि H-1B प्रणाली का दुरुपयोग हुआ। हर कामगार ने नहीं, लेकिन इतना हुआ कि यह बड़ी समस्या बन गई। कंसल्टिंग फर्मों ने कामगारों को कम वेतन दिया, प्रोजेक्ट्स बदल दिए और कुशल श्रम को केवल मुनाफे के साधन के रूप में देखा।

        जब अमेरिकी नागरिकों ने देखा कि उनकी नौकरियां खतरे में हैं, तो राजनीतिक दबाव बढ़ा। लोकतंत्र में यह दबाव कानून बन जाता है। क्या $100,000 की वार्षिक फीस अधिक है? शायद। लेकिन क्या कदम उठाना जरूरी था? निश्चित रूप से हाँ।

          भारत के लिए सीख

          H-1B सुधार पर आलोचना करने की बजाय, भारत को यह सोचना चाहिए: इतने सारे लोग क्यों देश छोड़ना चाहते हैं? यदि देश में ऐसा माहौल होता जो योग्यताओं को पहचानता, उचित वेतन देता और युवाओं को विकसित करने का मंच देता, तो क्या लोग H-1B या कनाडाई स्टडी परमिट के लिए कतार में खड़े होते? यह प्रवास विदेशी अवसर का उत्सव नहीं; यह घरेलू असफलता का प्रतीक है।

          भारत को जागरूक होकर सुधार करना होगा। घरेलू स्तर पर अवसर बढ़ाएं। अनुसंधान और विकास में निवेश करें। सगावाद और नौकरशाही को चुनौती दें। प्रतिभा को मान्यता दें। यदि प्रतिभा को घर पर मूल्यवान समझा जाएगा, तो वह विदेश में मंजूरी खोजने नहीं जाएगी।

          यह अमेरिकी दरवाजे बंद करने की कहानी नहीं है। दरवाजे कभी पूरी तरह बंद नहीं होते; केवल वे संकरे, महंगे और प्रतिस्पर्धात्मक बन जाते हैं। असली कहानी भारत की है, जिसने घर पर पर्याप्त दरवाजे नहीं बनाए।

          आज भारतीय गुस्से में हैं क्योंकि अमेरिका ने प्रवेश की लागत बढ़ा दी है। कल कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या यूरोप भी ऐसा कर सकते हैं। क्या हर बार हम रोते रहेंगे? या अपनी बागवानी संभालेंगे ताकि हमारे अंगूर विदेश में खट्टे न पड़ें?

            जब देश ठीक चल रहा हो तो देशभक्ति आसान है। सच्ची परीक्षा तब होती है जब दुनिया हमें कठोर सच्चाई दिखाती है। H-1B सुधार यही कठोर सच्चाई है। आलोचना करने की बजाय, इसे आत्मनिरीक्षण के आईने के रूप में स्वीकार करें। हाँ, कामगारों के लिए मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करें। हाँ, विदेश में अपने लोगों की रक्षा करें। लेकिन यह भी जरूरी है कि भारत ऐसा मंच बने जहाँ प्रतिभा विदेश में न, बल्कि घर पर खिलकर सफल हो।

            आज अंगूर खट्टे लग रहे हैं, लेकिन यदि भारत अपने घर में सुधार करेगा, अपनी बागवानी संभालेगा और अपनी प्रतिभा को मान्यता देगा, तो कल का स्वाद मीठा होगा — केवल दुनिया के लिए नहीं, बल्कि भारतीयों के घर पर आनंद के लिए भी।

            AmericanJobs #BrainDrain #DrakshKhatiChe #Editorial #GlobalTalent #H1BVisa #IndianMedia #IndiansAbroad #IndianTalent #JobsFirst #MigrationReality #PolicyAndPolitics #SystemMisuse #TruthHurts #USImmigration

            Next Post

            H-1B Visa: India’s Outrage – Are the Grapes Truly Sour, or Is the Truth Simply Bitter? Why Talented Youth Still Leave India

            Sat Sep 27 , 2025
            By Hitesh Jagad, – Chief Editor Dhwani Community Newpaper When grapes turn sour or taste bitter, our first instinct is often to blame the fruit itself. Yet the truth is that the problem often lies not with the grapes, but with how we have nurtured the vineyard. The recent sweeping […]

            આ સમાચાર વાંચવાનું ચૂકશો નહિ

            સમાચાર હાઇલાઇટ્સ

            Subscribe Our Newsletter